Class 10th समाजिक विज्ञान के महत्वपूर्ण सवाल

1. नई आर्थिक नीति क्या है?

उत्तर: लेनिन ने 1921 ईस्वी में एक नई नीति की घोषणा की जिसमें मार्क्सवाद के मूल्यों से कुछ हद तक समझौता करना पड़ा।

नई आर्थिक नीति में निम्नलिखित प्रमुख बातें थी-

a. किसानों से अनाज लेने के स्थान पर एक निश्चित कर लगाया गया। बचा हुआ अनाज किसान का था,

उसका मनचाहा इस्तेमाल कर सकता था।

b. यद्यपि यह सिद्धांत में कायम रखा गया कि जमीन राज्य की है फिर भी व्यवहार में जमीन किसान की हो गई।

c. 20 से कम कर्मचारियों वाले उद्योगों को व्यक्तिगत रुप से चलाने का अधिकार मिल गया।

d. उद्योगों का विकेंद्रीकरण किया गया।

e. विभिन्न स्तरों पर बैंक की स्थापना की गई।

f. विदेशी पूंजी को ही सीमित तौर पर आमंत्रित की गई।

g. ट्रेड यूनियन की अनिवार्य सदस्यता समाप्त कर दी गई।

2. रूसी क्रांति के प्रभाव की विवेचना करें।

उत्तर: रूसी क्रांति के प्रभाव:

a. इस क्रांति के पश्चात श्रमिक अथवा सर्वहारा वर्ग की सत्ता रूस में स्थापित हो गई तथा इसमें अन्य क्षेत्रों में भी आंदोलन को प्रोत्साहित किया।

b. रूसी क्रांति के बाद विश्व विचारधारा के स्तर पर दो खेमों में विभाजित हो गया। साम्यवादी विश्व एवं पूंजीवादी विश्व। इसके पश्चात यूरोप भी दो भागों में विभाजित हो गया। पूर्वी यूरोप और पश्चिमी यूरोप।

c. द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात पूंजीवादी विश्व तथा सोवियत रूस के बीच शीत युद्ध की शुरुआत हुई और आगामी

चार दशकों तक दोनों खेमों के बीच हथियारों की ओर जारी रही।

d. रूसी क्रांति के पश्चात आरती का आयोजन के रूप में एक नीवन आर्थिक मॉडल आया। आगे पूंजीवादी देशों ने

भी परिवर्तित रूप में इस मॉडल को अपनाया।

e. इसकी सफलता ने एशिया और अफ्रीका में उपनिवेश मुक्ति को भी प्रोत्साहित किया।

3. कार्ल मार्क्स की जीवनी एवं सिद्धांत का वर्णन करें।

उत्तर: कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई 1818 ईस्वी को जर्मनी में राइन प्रांत के प्रिय नगर में एक यहूदी परिवार में हुआ था। उनके पिता एनरिक मार्क्स एक प्रसिद्ध वकील थे जिन्होंने बाद में चलकर ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया था। मार्च में बोन विश्वविद्यालय में विधि की शिक्षा ग्रहण की परंतु 1836 ईसवी में वे बर्लिन विश्वविद्यालय चले आए जहां उन्हें जीवन को नया मोड़ मिला। मां सिंगल के विचारों से प्रभावित था। 1843 ईस्वी में उसने बचपन की मित्र हनी से विवाह किया।

कार्ल मार्क्स की मुलाकात पेरिस में 1844 ईस्वी में बैटरी इंजलस से हुई जिसने जीवन भर उनकी गहरी मित्रता बनी रहे। मार्क्स में इंजलस के साथ मिलकर 1848 इसवी में एक साम्यवादी घोषणा पत्र प्रकाशित किया जिससे आधुनिक समाजवाद का जनक कहा जाता है उपर्युक्त घोषणा पत्र में मार्क्स ने अपने आर्थिक सामाजिक एवं राजनीतिक विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया है। मार्क्स ने 1867 ईस्वी में दास कैपिटल नामक पुस्तक की रचना की जिसे समाजवादियों की बाइबिल कहा जाता है।

कार्ल मार्क्स के सिद्धांत:

a. द्वंदात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत

b. वर्ग संघर्ष का सिद्धांत

c. इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या

d. मूल्य एवं अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत

e. राज्यहीन एवं वर्गहीन समाज की स्थापना

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ऐतहासिक भौतिकवाद:

कार्ल मार्क्स के द्वारा इतिहास के भौतिकवादी व्याख्या प्रस्तुत की गई। उसने कहा कि इतिहास उत्पादन के साधन पर नियंत्रण के लिए दो वर्गों के बीच चल रहे निरंतर संघर्ष की कहानी है। उसके अनुसार इतिहास की प्रत्येक घटना एवं परिवर्तन के मूल में आर्थिक शक्तियां हैं। कार्ल मार्क्स के अनुसार इतिहास के निम्नलिखित चरण हैं

a. आदिम साम्यवादी युग

b. दासता का युग

c. सामंती युग

d. पूंजीवादी युग

e. समाजवादी युग

f. साम्यवादी युग

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4. द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय संघ का संक्षिप्त विवरण दें।

उत्तर: विभिन्न देशों के समाजवादी दलों को एक अंतरराष्ट्रीय संगठन के तहत सूत्र वध करने के लिए 14 जुलाई अट्ठारह सौ नवासी ईस्वी को पेरिस में सम्मेलन हुआ जिसमें 20 देशों के लगभग 400 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसे द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय संघ के नाम से जाना जाता है। इस संघ की स्थापना मार्क्सवादी समाजवाद के तेजी से फैलने का घोतक था। इस सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया कि प्रत्येक वर्ष 1 मई का दिन मजदूर वर्ग की एकता दिवस के रूप में मनाया जाएगा। मजदूरों के लिए 8 घंटे के कार्य दिवस को मांग किया जाना भी तय किया गया। इसका अंतर्राष्ट्रीय सचिवालय ब्रुसेल्स मैं स्थापित किया गया।

1 मई 1890 को सारे यूरोप और अमेरिका में लाखों मजदूरों ने हड़ताल प्रदर्शन किया तब से 1 मई अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में पूरे विश्व में मनाया जाता है। द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय संघ की सबसे बड़ी उपलब्धि थी धन्यवाद एवं युद्ध के विरुद्ध आंदोलन तथा सभी राष्ट्रों की बुनियादी समानता तथा राष्ट्रीय स्वतंत्रता के उनके अधिकार पर जोर देना। इस प्रकार समाजवादी आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत आधार मिलने पर श्रमिकों में विश्वास एवं इस आशा का संचार हुआ कि इतिहास उनके तरफ है तथा भविष्य में एक ऐसी विश्व का निर्माण होना है जो शोषण और उत्पीड़न से मुक्त होगा।

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