1. राष्ट्रवाद के उदय के कारणों एवं प्रभाव का वर्णन करें।
उत्तर: राष्ट्रवाद आधुनिक विश्व की राजनीति जागृति का प्रतिफल है। यह एक ऐसी भावना है जो किसी विशेष भौगोलिक, सांस्कृतिक या सामाजिक परिवेश में रहने वाले लोगों में एकता की वाहक बनती है।
राष्ट्रवाद की भावना का बीजारोपण यूरोप में पुनर्जागरण के काल में ही हो चुका था। परंतु 1789 ईसवी की फ्रांसीसी क्रांति से यह उन्नत रूप में प्रकट हुई। 19वीं शताब्दी में तो यह अनंत एवं आक्रमक रूप में सामने आई।
यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना के विकास में फ्रांस की राज्य क्रांति तत्पश्चात नेपोलियन के आक्रमणों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। फ्रांसीसी क्रांति ने राजनीति को अविभाज्य वर्गीय परिवेश से बाहर कर उसे अखबारों, सड़कों और सर्वसाधारण की वस्तु बना दिया। यूरोप के कई राज्यों में नेपोलियन के अभियानों द्वारा नवयुग का संदेश पहुंचा। नेपोलियन ने जर्मनी और इटली के राज्यों को भौगोलिक नाम की परिधि से बाहर कर उसे वास्तविक एवं राजनीतिक रूपरेखा प्रदान की, जिससे इटली और जर्मनी के एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ।
दूसरी तरफ नेपोलियन की नीतियों के कारण फ्रांसीसी प्रभुता और आधिपत्य के विरोध यूरोप में देशभक्ति पूर्ण छोड़ भी जगह। राष्ट्रवाद में न सिर्फ दो बड़े राज्यों के उदय को ही सुनिश्चित नहीं किया बल्कि अन्य यूरोपीय राष्ट्रों में भी इसके कारण राजनीति उथल-पुथल शुरू हुई। हंगरी कोमा बोहेमिया तथा यूनान में स्वतंत्रता आंदोलन इसी राष्ट्रवाद का परिणाम था। इसी के प्रभाव ने ओटोमन साम्राज्य के पतन की कहानी को अंतिम रूप दिया। बाल्कन क्षेत्र में राष्ट्रवाद के प्रसार के लाभ जाति को संगठित कर सर्विया को जन्म दिया।
इस प्रकार यूरोप में जन्मी राष्ट्रीयता की भावना ने प्रथम यूरोप को एवं अंततः पूरे विश्व को प्रभावित किया जिसके फलस्वरूप यूरोप के राजनीतिक मानचित्र में बदलाव तो आया ही साथ-साथ कई उपनिवेश भी स्वतंत्र हुए। यूरोप में राष्ट्रवाद
2. जुलाई 1830 ईसवी की क्रांति का विवरण दें।
उत्तर: चार्ल्स दशम एक निरंकुश एवं प्रतिक्रियावादी शासक था जिसने फ्रांस में उभर रही राष्ट्रीयता तथा जनतंत्र वादी भावनाओं को दबाने का कार्य किया। उसने अपने शासनकाल में संवैधानिक लोकतंत्र की राह में कई गतिरोध उत्पन्न किए। उसके द्वारा नियुक्त प्रधानमंत्री पोलिगनेक ने पूर्व में लुइ 18 वे के द्वारा स्थापित समान नागरिक संहिता के स्थान पर शक्तिशाली अविभाज्य वर्ग की स्थापना तथा उसे विशेषाधिकार से विभूषित करने का प्रयास किया। उसके इस कदम को उदार वादियों ने चुनौती तथा क्रांति के विरुद्ध षड्यंत्र समझा। प्रतिनिधि सदन एवं दूसरे उदार वादियों ने पोली करने के विरुद्ध असंतोष प्रकट किया। 4.30 विरोध की प्रतिक्रिया स्वरूप 25 जुलाई 1830 ईस्वी को चार अध्यादेश हूं द्वारा तत्वों का गला घोटने का प्रयास किया।
इन अध्यादेश के विरोध मैं पेरिस में क्रांति की लहर दौड़ गई और फ्रांस में 28 जून 1830 ईस्वी से गृह युद्ध आरंभ हो गया इसे ही जुलाई 18 सो 30 ईस्वी की क्रांति कहा जाता है। परिणामत चाल दशम को फ्रांस की राजगद्दी त्याग कर इंग्लैंड भागना पड़ा और इस प्रकार फ्रांस में बुर्बो वंश के शासन का अंत हो गया। फ्रांस में 18 से 30 ईसवी की क्रांति के परिणाम स्वरूप बुर्बो वंश के स्थान पर आर्लेयांश वंश को गद्दी सौंपी गई। यूरोप में राष्ट्रवाद
इस वंश के शासक लुई फिलिप ने उदार वादियों कोमा पत्रकारों तथा पेरिस की जनता के समर्थन से सत्ता प्राप्त की थी अतः उसकी नीतियां उदार वादियों के पक्ष में तथा संवैधानिक जनतंत्र के निमित्त रह
3. इटली, जर्मनी के एकीकरण में ऑस्ट्रिया की भूमिका क्या थी?
उत्तर: ऑस्ट्रिया कोमा इटली और जर्मनी के एकीकरण का सबसे बड़ा विरोधी था। ऑस्ट्रिया के हस्तक्षेप से इटली में जनवादी आंदोलन को कुचला गया। ऑस्ट्रेलिया का चांसलर मेटरनिख पुरातन व्यवस्था का समर्थक था। ऑस्ट्रेलिया को पराजित किए बिना इटली और जर्मनी का एकीकरण संभव नहीं था। अतः काबुल ने ऑस्ट्रेलिया को पराजित करने के लिए फ्रांस के साथ मिलकर क्रीमिया युद्ध में भाग लिया और फ्रांस का राजनीतिक समर्थन प्राप्त किया।
1860-61 मैं काबुल ने सिर्फ रूम को छोड़कर उत्तर तथा मध्य इटली के सभी रियासतों को मिला लिया। 18 सो 71 इसवी तक इटली का एकीकरण मेजोनी काबुल और गैरीबाल्डी जैसे राष्ट्रवादी एवं विक्टर इमैनुएल जैसे शासकों के योगदान के कारण पूर्ण हुआ। जर्मनी में राष्ट्रीय आंदोलन में शिक्षण संस्थानों बुद्धिजीवियों किसानों कलाकारों का महत्वपूर्ण योगदान था। यद्यपि ऑस्ट्रिया के चांसलर मीटर निक ने इस आंदोलन को कुचलने के लिए दमनकारी कानून चाल स्वाद के आदेश को जारी किया परंतु जर्मनी में राष्ट्रीयता की प्रबल धारा प्रवाहित हो रही थी जिसने एकीकरण के काम को आगे बढ़ने में सहायता प्रदान की। 18 से 66 ईसवी में ऑस्ट्रिया ने प्रसाद के खिलाफ सेड़वा में युद्ध की घोषणा कर दी और उसमें वह बुरी तरह पराजित हुआ।
इस तरह ऑस्ट्रिया का जर्मन क्षेत्रों से प्रभाव समाप्त हो गया और प्रसाद के नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण संपन्न हुआ जिसमें बिस्मार्क की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
4. जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर: बिस्मार्क जर्मन डाइट में प्रशा का प्रतिनिधि हुआ करता था और अपनी सफल कूटनीति का लगातार परिचय देता आ रहा था। वह निरंकुश राजतंत्र का समर्थन करते हुए जर्मनी के एकीकरण के प्रयास में जुट गया। यह उसकी कूटनीति सहायता थी कि चाहे उदारवादी और राष्ट्रवादी हूं या कट्टरवादी राष्ट्रवादी सभी उसे अपने विचारों का समर्थक समझते थे। बिस्मार्क जर्मनी एकीकरण के लिए रक्त और लौह नीति का अवलंबन किया। उसने अपने देश में अनिवार्य सैनिक सेवा लागू कर दी।
बिस्मार्क ने अपनी नीतियों से प्रशाखा सुदृढ़ीकरण किया। बिस्मार्क ने ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर 18 सो 64 ईस्वी में प्लेस वीक और होल्सटीन राज्यों के मुद्दे को लेकर डेनमार्क पर आक्रमण कर दिया क्योंकि उन पर डेनमार्क का नियंत्रण था। जीत के बाद शैलेश वीक प्रशा के अधीन हो गया और हॉलिस्टिक ऑस्ट्रिया को प्राप्त हुआ। क्योंकि इन दोनों राज्यों में जर्मनों की संख्या अधिक थी आता प्रशा ने जर्मन राष्ट्रवादी भावनाओं को भड़का कर विद्रोह फैला दिया जिसे कुचलने के लिए ऑस्ट्रिया को सेना को प्रसाद के क्षेत्रों को पार करते हुए जाना था और प्रशा ने ऑस्ट्रिया को ऐसा करने से रोक दिया।
18 सो 66 ईस्वी में ऑस्ट्रेलिया ने प्रसाद के खिलाफ सेडोवा में युद्ध की घोषणा कर दी और ऑस्ट्रिया युद्ध में बुरी तरह पराजित हुआ। इस तरह ऑस्ट्रेलिया का जर्मन क्षेत्र से प्रभाव समाप्त हो गया और इस तरह जर्मन एकीकरण का दो तिहाई कार्य पूरा हो गया। देश जर्मनी के लिए प्रांत से युद्ध करना आवश्यक था। क्योंकि जर्मनी के दक्षिण रियासतों के मामले में फ्रांस हस्तक्षेप कर सकता था। 19 जून अट्ठारह सौ सत्तर ईस्वी को फ्रांस के शासक नेपोलियन ने प्रशा के खिलाफ़ युद्ध की घोषणा कर दी और सेडान की लड़ाई में फ्रांसीसी यों की जबरदस्त हार हुई।
10 मई 1871 ईसवी को फ्रैंकफर्ट की संधि के द्वारा दोनों राष्ट्र के बीच शांति स्थापित हुई। इस प्रकार सेडान के युद्ध में ही एक महाशक्ति के पतन पर दूसरी महाशक्ति जर्मनी का उदय हुआ। अंततः जर्मन 1871 ईसवी तक एक एकीकृत राष्ट्र के रूप में यूरोप के राजनीतिक मानचित्र में स्थान पाया।
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