भारत आरंभ

भारत: आरंभ से लेकर आठवीं शताब्दी ईस्वी तक

1. भारत के प्राकृतिक भूगोल और इतिहास पर प्रकाश डालिए।
उतर:- भारत भौगोलिक दृष्टि से एक पूर्ण इकाई है। यहां विभिन्न प्रकार की जलवायु ,भूमि तथा खनिज हैं, जी के प्राकृतिक लक्षण और पहचान भी अलग-अलग हैं। प्राकृतिक क्षेत्र सांस्कृतिक क्षेत्र के अनुरूप होते हैं। इन विभिन्न प्राकृतिक क्षेत्रों में सांस्कृतिक विकास भी विभिन्न प्रकार का रहा है। देश के अलग-अलग क्षेत्र भाषा, बोली , पोशाक, फसल,जनसंख्या घनत्व,जाति, संरचना आदि की दृष्टि से एक दूसरे से भिन्न है। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश और उत्तरी बिहार जैसे कुछ क्षेत्रों में यानी गंगा घाटी के उपजाऊ मैदानों में जनसंख्या घनत्व बहुत अधिक है जबकि पठारी मध्य भारत की बसावट काफी क्षेत्री हुई है। इस प्रकार मगध कौशल अवनीत महाराष्ट्र आंध्र कलिंग और चोल देश जैसे कुछ क्षेत्र प्रारंभ में विकसित क्षेत्रों के रूप में उभरे जबकि अन्य क्षेत्र विकास की दृष्टि से पिछड़ रहे।
आरंभिक इतिहास में मगध ने सबसे अधिक विकास किया तो इसका कारण उपजाऊ मिट्टी और प्राकृतिक वनस्पति ही था। पास के जंगलों से हाथी और लौह अयस्क प्राप्त होते थे जिन्होंने मगध को करीब गति से आगे बढ़ने में योगदान दिया। कृषि से संबंध सिंचाई का तरीका भी भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न है। अपनाए गए भिन्न-भिन्न तरीके इस बात पर निर्भर करता है कि यह किस क्षेत्र में कितने उपयोगी हैं।
वस्त्र शैलियों के संबंध में भी भूगोल और पर्यावरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

       विभिन्न प्रदेशों की वस्त्र शैलियों पर इस प्रभाव को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है जैसे कश्मीर तथा राजस्थान में रहने वाले लोगों के वस्त्र और उनके पहन ने के तरीके भिन्न होते हैं।
गेहूं पंजाब हरियाणा और उत्तर प्रदेश के लोगों का मुख्य भोजन है जबकि बंगाल बिहार और उड़ीसा जैसे पूर्वी भारत के प्रदेशों के लोगों का भोजन और वहां का मुख्य फसल चावल है। क्योंकि यह फसलें विशेष प्राकृतिक परिस्थितियों में उगती हैं और समय के साथ बाद में यह फसलें उस स्थान पर विशेष के लोगों को भोजन संबंधी आदतों को प्रभावित करती हैं इसलिए भारतीय उपमहाद्वीप की वस्त्र शैली से संबंधित या भोजन संबंधी आदतों या संस्कृतियों से संबंध विविधताओं के अस्तित्व को यहां के प्राकृतिक भूगोल के संदर्भ में ही ठीक से समझा जा सकता ह

पर्यावरण और मानव बस्तियां
मानव बस्तियों के विकास में पर्यावरण का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। प्रत्येक सभ्यता का विकास नदियों के किनारे तथा उपजाऊ क्षेत्र में ही हुआ है उदाहरणार्थ हड़प्पा मेसोपोटामिया सुमेरियन जैसे सभ्यताओं को देखा जा सकता है। वर्तमान में हालांकि यहां वर्षा कम मात्रा में होती है फिर भी सभ्यता यही फली फूली। इसका कारण यह है कि आज से लगभग 4000 वर्ष पूर्व यहां की जलवायु आज जैसी नहीं थी। विभिन्न तथ्यों से यह सिद्ध हो चुका है कि वहां पहले अधिक वर्षा होती थी तथा वह स्थान मानव समाज के लिए आदर्श था।
इस प्रकार अत्याधिक उपजाऊ जमीन, पर्याप्त वर्षा, लोहे की खान ,लकड़ी के अच्छे स्रोत, नदियों के द्वारा व्यापार की सुविधा इत्यादि ने मगध साम्राज्य को सफल बनाया। इन्हीं कारणों से गंगे प्रदेश अन्य प्रदेशों से अत्यधिक विकसित था। मगध की राजधानी पाटलिपुत्र बनी जिसकी मेहता सदियों तक बनी रहे। पाटलिपुत्र के उत्थान और पतन के कारणों में भौगोलिक परिस्थिति की प्रमुख भूमिका है। उदाहरण के लिए गंगा कोमा सोन कोमा गंडक नदियां पाटलिपुत्र को प्राकृतिक संरक्षण देती थी तथा यह नदियां व्यापार का मार्ग प्रदान करती थी जिस से पाटलिपुत्र का उत्थान हुआ इन्हीं नदियों में लगातार बाढ़ आने तथा इनके मार्ग बदल जाने के कारण पाटलिपुत्र का महत्व कम हो गया।

भौगोलिक यह नियत्त्

के विरुद्ध तर्क
भारतीय संस्कृति विकास को समझने के लिए भौगोलिक तथ्यो की जानकारी होना अति आवश्यक है। इससे विभिन्न प्रदेशों में विकास के अलग-अलग तरीकों और शैलियों को भी समझने में सहायता मिलती है फिर भी भूगोल और पर्यावरण को एकमात्र या प्रमुख नियामक कारकों के रूप में नहीं लिया जा सकता क्योंकि अंततः प्रकृति क्षेत्र मात्र संभावनाओं वाले क्षेत्र होते हैं और उन संभावनाओं को मनुष्य अपनी तत्कालीन तकनीक उपलब्धियों के आधार पर कार्य करता है।

प्राकृतिक विकास का मार्ग तय करती है जबकि मनहूस विकास की अवस्था और उसकी गति को कम करता है। इसीलिए ना तो प्रकृति का प्रभाव स्थाई होता है और ना ही मनुष्य और पर्यावरण के संबंध में सुई स्थिर हैं। वह तकनीकी विकास के कारण प्रकृति की सीमाओं और बाधाओं पर विजय प्राप्त करता रहा है। एक समय में प्राकृतिक विशेषताएं और पर्यावरण से संबंधित स्थितियां प्रतिकूल प्रतीत होती हैं वही दूसरे चरण में वह समृद्ध संभावनाओं वाली हो सकती हैं। उदाहरण के लिए शिकार जीबी लोग जंगलों के निकट सीमांत क्षेत्र में रहना पसंद करते थे। लेकिन प्रारंभिक किसानों को लोहे आदि के हल इत्यादि के अभाव में स्वयं को गंगा यमुना दो बाद के पश्चिम में नरम भूमि तक ही सीमित रहना पड़ा। लोहे के आगमन के साथ बाद में यह किसान उत्तरी भारत के समृद्ध जलोढ़ मैदानों पर पहुंचे और उपजाऊ मिट्टी एवं घनी बनस्पति वाली भूमि का दोहन कर सके।

2. भारत के आधारभूत भू-आकृति विभाजन का वर्णन कीजिए।

उतर:– भारतीय उपमहाद्वीप को भू-आकृति लक्षणों के आधार पर चार भागों में बांटा गया है–
1. हिमालय के पर्वतीय प्रदेश– आधुनिक सर्वेक्षणों के आधार पर हिमालय पर्वत श्रृंखला की ऊंचाई लगातार बढ़ रही है। भारत के उत्तर में हिमालय की पर्वत माला नए और मुर्दार पहाड़ों से बनी है। यह पर्वत श्रेणी कश्मीर से अरुणाचल तक लगभग 15 सो मिल तक फैली हुई है। इसकी चौड़ाई 150 से 200 मिल तक है। यह संसार की सबसे ऊंची पर्वतमाला है और इसमें अनेक चुटिया हैं जो 24000 सीट से अधिक ऊंची है। हिमालय की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट है जिसकी ऊंचाई 29028 सीट है जो नेपाल में स्थित है। अन्य मुख्य चोटिया कंचनजंगा, धौलागिरी, नंगा पर्वत, गोसाई थान ,नंदा देवी इत्यादि हैं।
2. सिंधु गंगा के मैदान:– हिमालय के दक्षिण में एक विस्तृत समतल मैदान है जो लगभग सारे उत्तर भारत में फैला हुआ है। यह गंगा ,ब्रह्मपुत्र तथा सिंधु और उनकी सहायक नदियों द्वारा बना है। यह मैदान गंगा सिंधु के मैदान के नाम से जाना जाता है। इसका अधिकतर भाग गंगा नदी के क्षेत्र में पड़ता है। सिंधु और उसकी सहायक नदियों के मैदान का आधे से अधिक भाग अब पश्चिमी पाकिस्तान में पड़ता है और भारत में सतलुज रवि और व्यास का ही मैदान रह गया है। इस प्रकार पूर्व में गंगा नदी के डेल्टा का अधिकांश भाग पूर्वी पाकिस्तान में पड़ता है। उत्तर का यह विशाल मैदान पूर्व से पश्चिम तक भारत की सीमाओं के अंदर लगभग 1500 मील लंबा है। इसकी चौड़ाई 150 से 200 मील तक है। इस मैदान में कहीं कोई पहाड़ नहीं है।
3. प्रायद्वीपीय भारत– प्रायद्वीपीय भारत को दो भागों में बांटा जा सकता है–
क. प्रायद्वीपीय पठारी भाग– उत्तरी भारत के मैदान के दक्षिण का पूरा भाग एक विस्तृत पठार है जो दुनिया के सबसे पुराने अस्थल खंड का अवशेष है और मुख्यता कड़ी तथा दानेदार कायांतरित चट्टानों से बना है। पठान तीन और पहाड़ियों श्रेणी से घिरा है। उत्तर में विंध्याचल तथा सतपुड़ा की पहाड़ियां हैं जिनके बीच नर्मदा नदी पश्चिम की ओर बहती है। नर्मदा घाटी के उत्तर में विंध्याचल पर पाती ढाल बनाता है। सतपुड़ा की पर्वत उत्तर भारत को दक्षिण भारत से अलग करती है और पूर्व की ओर महादेव पहाड़ी तथा मैकाल पहाड़ी के नाम से जानी जाती है। सतपुड़ा के दक्षिण में अजंता की पहाड़ियां है। प्रदीप के पश्चिमी किनारे पर पश्चिमी घाट और पूर्वी किनारे पर पूर्वी घाट नामक पहाड़ियां है। पश्चिमी घाट पूर्वी घाट की अपेक्षा अधिक ऊंचा है और लगातार कई सौ मिलो तक 3500 फीट की ऊंचाई तक चला गया है। पूर्वी घाट ना केवल नीचा है बल्कि बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों ने इसे कई स्थानों से काट डाला है जिनमें उत्तर से दक्षिण महानदी, गोदावरी ,कृष्णा तथा कावेरी मुख्य है। दक्षिण से पूर्वी और पश्चिमी घाट नीलगिरी की पहाड़ी में मिले जाते हैं जहां दोदाबेटा की 8730 फीट ऊंची चोटी है। नीलगिरी के दक्षिण में अनामलाई तथा का डैम की पहाड़ियां है। अन्नामलाई पहाड़ी पर आने मूवी पठार की सबसे ऊंची चोटी 8840 फिट है।

        इन पहाड़ियों और नीलगिरी के बीच पाल घाट का दर्रा है जिससे होकर पश्चिम की ओर रेल जाती है। पश्चिम घाट में मुंबई के पास थालघाट और भोरघाट दो महत्वपूर्ण दर्रे हैं जिनसे होकर रेल मुंबई तक जाती हैं। उत्तर पश्चिम में विंध्याचल श्रेणी और अरावली श्रेणी के बीच मालवा के पठार हैं जो लावा द्वारा निर्मित हैं। अरावली श्रेणी दक्षिण से गुजरात से लेकर उत्तर में दिल्ली तक कई अवशिष्ट पहाड़ियों के रूप में पाई जाती हैं। इस के सबसे ऊंचे दक्षिण-पश्चिम छोर में माउंट आबू स्थित है। उत्तर पूर्व में छोटा नागपुर पठार है जहां राज महल पहाड़ी प्रायद्वीपीय पठार की उत्तर पूर्वी सीमा बनाती है किंतु असम का शिलांग पठार भी प्रायद्वीपीय पठार का ही भाग है जो गंगा के मैदान द्वारा अलग हो गया है।
दक्षिण के पठार की औसत ऊंचाई 1500 से 3000 फिट तक है। इसका ढाल पश्चिम से पूर्व की ओर है नर्मदा और ताप्ती को छोड़कर बाकी सभी नदियां पूर्व की ओर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इन नदियों के कारण इस पठारी क्षेत्र में जलोढ़ मैदान बने और इन मैदानों देवताओं में मूल आवास क्षेत्रों का विकास हुआ। यहां दीर्घकाल तक सांस्कृतिक विकास हुआ।
ख. समुद्र तटीय मैदान– पठार के पश्चिमी तथा पूर्वी किनारों पर उपजाऊ तटीय मैदान मिलते हैं। पश्चिमी तटीय मैदान संकीर्ण है इस के उत्तरी भाग को कोंकण तट और दक्षिणी भाग को मालाबार तट कहते हैं। पूर्वी तटीय मैदान अपेक्षाकृत चौड़ा है और उत्तर में उड़ीसा से दक्षिण मैं कुमारी अंतरीप तक फैला हुआ है। महानदी गोदावरी कृष्णा तथा कावेरी नदी या जहां डेल्टा बनाती है वहां यह मैदान और भी अधिक चौड़ा हो गया है। मैदान का उत्तरी भाग उत्तरी सरकार तक कहलाता है
4. द्वीपीय भाग–भारत के द्वितीय भागों में अरब सागर में लक्ष्य दीप और बंगाल की खाड़ी में अंडमान निकोबार द्वीप समूह है। लक्ष्यदीप प्रवाल रीजन द्वीप है या एयरटेल है वही अंडमान निकोबार दीप समूह अरकान योमा का समुद्र में प्रचलित हिस्सा माना जाता है और वस्तुतः यह समुद्र में डूबी हुई पर्वत श्रेणी है। अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर ज्वालामुखी क्रिया के अवशेष भी दिखाई पड़ते हैं। इसके पश्चिम में बैरन द्वीप भारत का इकलौता सक्रिय ज्वालामुखी है।

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